प्रतियोगी परिक्षाओं के रास्ते पर


साथियों,

इस लेख के माध्यम से मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँं आप सब जो इन पृष्ठों को खोले हुए है, देश के तमाम विद्यालायों विश्वविद्यालयों के डिग्री डिप्लोमे रखते होंगे, आप सभी ने सभी विषयों में अच्छी महारत हासिल कर रखी होगी। आप में से कुछ का कुछ पदों पर चयन भी हो गया होगा । और कुछ दावा करने का साहस रखते होंगें कि वे अपना चयन करा  कर ही दम लेंगें । मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। यहां आपको छूट है इन पृष्ठों पर और आगे बढ़ने ना बढ़ने की। मैं आशा नहीं करता की एक कम पढा़-लिखा और बेरोज़गार विद्यार्थी ऐसी कोई सलाह दे सकता है जो आपके हित में हो।
 मैं यह मानकर चल रहा हूँ कि आप अठारह से पच्चीस वर्ष के आयु वर्ग वाले होगें। जल्दी जगने वाले अठारह से कम के छात्र भी आप हो सकते हैं और देर से जगने वाले पच्चीस से ज्यादा के भी। मैं यह भी मानकर चल रहा हूँ कि आप किसी ना किसी प्रतियोगिता परीक्षा को नज़र में रखकर अपनी कलम की चोंच पैनी कर रहे हैं। और सोंच रहे हैं ‘बस...। अब की बार तो पक्का क्वालीफाई करना है।’ या आप अभी कंपटीशन में नए-नए आए है; फॉर्म भी किसी दोस्त या पिताश्री के किसी दोस्त की सलाह पर आपने डाला है और आप सोंच रहे हैं ‘चलो देखते हैं क्या होता है...!’ और अब आपके सामने सवाल खड़ा है ‘तैयारी कैसे की जाए...?’ हालांकि आप में से कुछ लोग इस प्रश्न का उŸार खुद ही लिए फिरते हैं कमी बस समय की है, आप किताबों के इर्द-गिर्द घूमते रहते हैं लेकिन व्यस्तता इतनी है कि आप किताब खोल ही नही पाते। जबकि आप भी जानते हैं किताब खुलनी चाहिए। आप अगर एक बार पढ़ने बैठ गए तो अच्छे-अच्छों की ऐसी-तैसी कर सकते हो। आपने स्कूल के दिनों में कई बार ऐसा किया भी है। मैं आपको बता दूँ वे सारे तरीके-फॅार्मूले जिन्हें आप जानते हैं और अमल में नही ला सकते या नहीं ला रहे हैं मैं उन्हें गधे की लीद से बेहतर नहीं मानता। आप उन्हें गुरूमंत्र कहें या कुछ ओर...।
मैं जानता हूँ आप में से बहुत कम लोग ही अपना एक निर्धारित लक्ष्य रखते हैं कि मुझे ‘अमूक’ पद प्राप्त करना है,  आप कहते होंगें ‘शेर कभी घास नहीं खाता।’ ज्यादातर तो इसी कोशिश में होंगें कि जैसे-तैसे करके कोई भी छोटी-मोटी नौकरी मिल जाए, नौकरी सरकारी होनी चाहिए पोस्ट कौन पूछता है। और बड़े डिपार्टमेंट या मिनिस्ट्री का तो पीओन भी पूरी ताकत रखता है। मैं आपसे आपकी विचारधारा बदलने की अपील नही करता। कंपटीशन इतना बढ़ चुका है कि घास और मांसदोनों ही समान रूप से दुर्लभ हैं। क्लर्क के पद के लिए तैयारी करने वाला भी आज बेफ़िक्र होकर नही सोता।
आगे बढ़ने से पहले ओ... सॉरी आगे पढ़ने से पहले मैं आपसे एक विनम्र प्रार्थना करता हूँ कि आपसे जैसे कहा जाए आप वैसे ही किजिएगा। किसी पाठक को काई बात असंगत लगे तो माफ कीजिएगा। किसी को ठेस पहूँचाने का मेरा कोई इरादा नहीं है। सारा कड़वा सच लिख रहा हूँ इसलिए आपको मेरी बातों मे कुछ तीखापन या खारापन तो महसूस होगा ही आपका नुकसान कुछ नही होगा। आप चाहें तो अभी इन कागजों को फेंक सकते हो।
 अग़र आपका काम सिर्फ परीक्षा देना भर है, बाकी ‘जुगाड़’ आपके पिताश्री ने कर लिया है और आपको बेफ़िक्र रहने को कहा गया है, आपको आश्वासन दिया गया है आपका ‘काम’ हो जाएगा। आपके कुछ रूपये (लाखों में) जा चुके हैं बाकी आपको ‘काम’ होने के बाद देने हैं तो आप अपने श्रीनेत्रों को कष्ट मत दीजिए। ज्यादा पढ़ने से (मतलब जो पढ़ते नही हैं वे अग़र पढ़ने बैठ जाए तो) आँखें दुखने लगती हैं। आप पुस्तक रख दीजिए। आपकी नौकरी पक्की...। भगवान आपका पैसा डूबने से बचाए।
 या आपके पिता का कोई अच्छा व्यवसाय है, अच्छी चलती हुई दुकान है या आप बड़े जमींदार हैं आपको विश्वास है नौकरी नही भी मिलती तो उस क्षेत्र विशेष में आपका निर्वाह मजे से हो जाएगा। ‘‘नौकरी वाले आपके सामने बेचते ही क्या हैं ? इतना तो आप दो दिन में घर बैठे कमा लेते हो वह भी मालिक बनकर।’’ सेठजी आपसे दण्डवत निवेदन है आप अपने ही क्षेत्र में चले जाइए। भविष्य में भी समाज को आपकी उतनी ही आवशयकता रहेगी जितनी आज या आज से पहले थी। कंपटीशन की फसल में हर साल  जो उगता है उससे तो उन लोगों का पेट भी नही भर पाता जिनके पास दूसरा विकल्प नही है। मैं आपके लिए और कोई सुझाव नही रखता आप इसे आगे ना पढ़े।
 या ‘तुक्के’ के इंतजार में बैठे हैं आपको लगता है किसी ना किसी परीक्षा में आपके गोले तुक्के में इतने सही भर जाएगें कि आपका चुनाव हो जाएगा आखि़र आप इतनी सारी परीक्षाओं में बैठेगें तो क्या किसी भी परीक्षा में भी आपका तीर सही निशाने पर नही बैठेगा ? या आपको लगता है किसी परीक्षा को जांचने वाला तो ऐसे मूड में आएगा कि आपको अच्छे अंक बक्श देगा। मैं आपको याद दिला दूँ आप ही सच्चे कंपीटीटर हैं और आज की परीक्षाओं में जिनमें पता नही क्या-क्या ऊल-जलूल पूछ लिया जाता है आपकी रणनीति ही बेहतर है। मेरी बेस्ट विशिश आपके साथ है। भगवान करे आपका तीर जल्दी से जल्दी ( मतलब ओवर ऐज होने से पहले) ठीक निशाने पर लग जाए। आपको भी मेरी ऊँट-पटाँग बातों में सर खपाने की कोई जरूरत नही है। आपको यह क्या कोई भी किताब पढ़ने की जरूरत नहीं रह जाती। किताबों के पैसे से आप अपना फोन रिचार्ज करा सकते हैं और नाइट्स कॉल पर आपने स्त्री या पुरूष मित्र (गर्लफ्रैंड या ब्वायफ्रैंड) के साथ इस बात पर चर्चा कर सकते हैं कि जब आपका तुक्का लग जाएगा तब आप एक-दूसरे को क्या भेंट करोगे। आप इसका जाप करें-
तीरम् लक्ष्यम् छेद्धामि ।
तुक्का मम् सिलक्टम् करोमि।।
 या आप भरपेट खाना और दस-बारह घण्टे सोना इतना जरूरी मानते है कि आप उसका रूटिन नहीं बदल सकते, आप सुबह आठ बजे से पहले उठ नही सकते; उठते हैं तो आपका सिर दर्द करता है, आँखें दर्द करती हैं; दिन में भी आपको एकाध घण्टे की नींद जरूर चाहिए। और खाना...! वह अगर आपको समय पर ना मिले तो आपका दिमाग़ खुद ही रसोई में चला जाता है, तो आप इन पृष्ठों को तकिए के नीचे दबा कर सो सकते हैं या नहाने के पानी में मिलाकर दिन में दो बार नहा सकते हैं। आप इसपर खाना रखकर भी खा सकते हैं। आपके हित में यहां कुछ नही है। माफ कीजिएगा आपको जगाने की कोशिश की। गुड नाइट...!
आ... आ... आ...! रूकिए साहब। याद आया आपके लिए भी एक सूचना है; कुछ ही दिन पहले एक अध्ययन में पता चला कि पर्याप्त सोने वाले व्यक्तियों की सेहत अच्छी रहती है। ऐसे लोगों में मानसिक विकार अपेक्षाकृत कम पाए जाते हैं। उनके दिल की धड़कन और रक्तचाप भी सामान्य बने रहते है। आँखें भी अधिक आराम प्राप्त करती हैं और दृष्टि विकार कम होता है। नौकरी की तो उनकी भी गारंटी सरकार ने अभी तक नहीं ली है जिनकी हरकतें उल्लू परिवार में शामिल हाने वाली हैं। कमसकम अपना शरीर तो बचा रहे। अब आप सो जाइए...। गुड नाइट...!
 या आपसे जबरन फॉर्म भरवाया गया है, आपके पिताश्री के सहकर्मी का कोई जानकार पता नही कैसे कहीं कोई नौकरी पा गया और तब से आपके पिताश्री पर भूत सवार है; आपको भी फॉर्म भराए पड़े हैं। या आपके स्त्री या पुरूष मित्र जो पहले से इस लेथन में फँसे हैं आपको उकसाते रहते हैं और मात्र उनकी खुशी के लिए आपने फॉर्म डाला है आप इस बात को अच्छी तरह जानते हैं साठ रूपये की एक मैगज़ीन पढ़ने से नौकरी नही लग जाती, आप सही सोंचते हैं मैं आपकी बात से सहमत हूँ। साठ रूपये की किताब से नौकरी कभी नहीं लगती। आप भी इन पृष्ठों को रख दीजिए। आपने अपनी व्यस्त दिनचर्या से इतना समय निकाला इसके लिए आपको हार्दिक धन्यवाद।
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अब भी अगर आप मेरा यह संदेश पढ़ रहे हैं तो मैं यह मानता हूँ कि आप ही वह हो जिनसे मैं वास्तव में अपनी बात करना चाहता हूँ। आपके पिताजी का कहीं कोई ‘जुगाड़’ नहीं चल पर रहा हैं, आपको विरासत में ऐसा कोई व्यवसाय, संपŸिा आदि नही मिली जिसके बल पर आपका काम चल सके, आपसे फॉर्म भी किसी ने जबरन नही भराया है। मतलब आपको अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी है, अपने दम पर। और आप चाहते भी हो।
दोस्तों, मैं आपको बता दूँ आप भी किसी घाटे की स्थिति में नही हो। आपको जरूरत है सही दिशा और उचित गति की ताकि आप समय से अपना लक्ष्य पा जाओ और अपने परिवार को, इस समाज को, और अगर आप ज्यादा सोेचते हो तो इस देश को मजबूती दे सको। आपके लिए मैं कुछ सुझाव लिख रहा हूँ। ये सुझाव मेरे नहीं हैं ये समय और स्थिति की तरफ से आपके लिए है। अपना अधिकतम समय मैंने विद्यार्थियों की गतिविधियों को, उनके अध्ययन करने के तरीकों को नजदीक से देखने में लगाया है। जो विद्यार्थी इस क्षेत्र में सफल हैं वे सफल क्यों हैं और जो असफल हैं वे असफल क्यों हैं इस बात को पता लगाने में मैंने काफी समय खराब किया है। आप अपने कुछ साथियों को देखते हैं जो हर परीक्षा में सफल होते जा रहे हैं और कुछ ऐसे भी जो हर कहीं से बाहर। कुछ ऐसे भी हैं जो कहीं कोचिंग नही लेते फिर भी सफल हैं और कुछ सारे दिन रजिस्टर-किताब उठाए फिरते हैं मगर रिजल्ट के दिन उनकी बŸाी गुल हो जाती है। इस सबके बैकग्राऊंड मेें कौन से कारण छुपे हैं उनको मैं आपके सामने लाने का प्रयास करने जा रहा हूँ।
शुरूआत-
वे विद्यार्थी जो कंपटीशन में नए आते हैं दो गलतियों के शिकार अधिकतर होते हैं। पहली गलती यह कि वे दिशा निर्धारित नही कर पाते। उन्हें इतना  भी पता नही होता कि वे अपनी योग्यता, आपने विषयों और अपनी रूचियों के अनुसार किस ओर आगे बढ़ें। वे अपनी शुरूआत करते हैं खिचड़ीफॉर्म प्रक्रिया से और कोई भी फॉर्म भर देते हैं जो उन्हें मिल जाता है। जो  भी एकाध किताब उस परीक्षा के नाम की कहीं मिलती है उसे पढ़ते हैं और सोंचते हैं बस इस किताब से ही तो सब कुछ आएगा परीक्षा में। इसे अगर रट दूँ तो ‘अमूक’ नौकरी पक्की।
 ष्ब्ठैम्ष् की दसवीं की परीक्षा नही है मेरे दोस्त! एक कुँजी परीक्षा वाले दिन खरीद कर जूते में दबा लो, मौका मिला तो चला लो और आ गए पासिंग मार्क्स। इस दुनिया में 33ः पर पास नही होते और ना ही ग्रेस मिलता है।
 दूसरी गलती यह कि नए आने वाले कंपटीटर अपने सामने किसी को कुछ समझते ही नही। उन्हें लगता है ये सारे एक्जाम तो मैं नींद में भी क्वालीफाई कर सकता हूँ, ये जो कई-कई सालों से लगे पड़े हैं सारे मूर्ख हैं। ये पुराने जमाने के तरीके से पढ़ते हैं हम शॉर्टकट तरीके से अभी इनसे पहले कामयाब होकर इन्हें चौकाऐगें। कोचिंग में भी वे सीखने कम जाते हैं यह देखने ज्यादा जाते हैं टीचर कैसा पढ़ाते हैं। कोई सीनियर अगर उन्हें कुछ बताता है तो वे उसकी बात को बकवास समझते हैं और वे उसे कहते हैं (मन ही मन में) ‘‘पहले अपना तो सुधार कर ले फिर बोल लियो।’’ वे इस बात को नही समझते सीनियर जो बात बता रहे हैं उन्हें कितना समय और पैसा खराब करने के बाद मिलेगी और शायद ना भी मिले। सीनियर्स जानते हैं उनकी छोटी सी बात नए कंपटीटर के लिए कितना महत्व रखती है इसलिए वे बताते रहते हैं।
आपका सबसे पहला काम है उन सभी संस्थाओं की सूची बनाना जो प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित करती हैं। जैसे- न्च्ैब्ए ैैब्ए क्ैैैठ बैंक, रेलवे विभिन्न राज्यों की पुलिस सेवा, अन्य सुरक्षा बल और सभी राज्यों के राज्य स्तर पर डिपार्टमेंट्स। फिर उनमें दिए जाने वाले सभी पद अलग-अलग पता करो। उन सभी पदों पर क्या-क्या कार्य आपको करने होगें यह भी पता करो। उस के बाद आपको सूची बनानी है उन सब पदो के लिए आवश्यक योग्यताओं की जिनमें आप कुछ रूचि लेते हैं मगर इस बात का ध्यान रहे आपके ज्यादातर साथी हमेशा आपको अपने जैसा रास्ता बताने की कोशिश में रहते हैं आप अगर सिगरेट पीने वालों की संगत में जाओगे तो वे आपको सिगरेट के लिए ही उकसाएगें। ऐसी स्थिति में आपकी वास्तविक रूचि-अरूचि की कोई कीमत नहीं रह जाती। आपको दूसरा रास्ता सूझता है किसी कोचिंग वाले से सलाह लेने का। बहुत ही कम कोचिंग्स ऐसे हैं जो आपकी सफलता को अपनी सफलता मानते हैं और आपकी असफलता को अपनी असफलता। ज्यादातर को तो आपकी सफलता-असफलता से ही कुछ लेना देना नही होता। उन्हें आपके रूप में एक ग्राहक मिलता है और उनकी कोशिश होती है आपको अपना सामान  ( जिसे वे शिक्षा कहते हैं ) बेचना। आप उनके पास जाते हैं तो वे आपको सिर्फ उसी दिशा में आगे बढ़ने की सलाह देगें जिसकी वे कोचिंग दे रहे हैं। यह भी आपके लिए सही नहीं है।
 आप ऐसा ना समझें कि मै आपको भटका रहा हूँ वास्तव में बहुत ज्यादा कंपटीटर दोस्तो और इन खाने-कमाने वाले कोचिंग्स में सुझावों पर अपने कई-कई साल खराब कर लेते हैं। आप इसके लिए इंटरनेट की सहायता लें तो बेहतर रहेगा।
 इस प्रकार की सारी जानकारी जब आप जुटा लें तो उसका बारीकी से निरिक्षण करें। अपनी योग्यता और रूचियों का खास ध्यान रखें। अगर आपको नौकरी मिल जाती है तो आपको पूरा जीवन उसमें लगाना है। यह ठीक उसी प्रकार का गंभीर मामला है जैसा कि आप जीवन साथी चुनने का मानते है। जिस प्रकार बिना सोंचे समझे, बिना उसकी कुछ आवश्यक बातों को जाने आप किसी से विवाह नहीं कर सकते ठीक उसी प्रकार किसी नौकरी या उस क्षेत्र के बारे में जिसके लिए आप अपने दिन-रात एक करने जा रहें हैं आपको बहुत कुछ पता होना चाहिए। कोई भी, कैसी भी मिल जाए ऐसा क्यो सोंचते हो? आखि़र आप उसके लिए पर्याप्त परिश्रम करने जा रहे हैं, आप उसकी ख़री कीमत अदा करने जा रहे हैं फिर कोई भी-कैसी भी क्यों लो लोगे ?
आपको अगर एक सूट गिफ्ट में मिल रहा है तो आपको उसमें रंग, डिजाइन आदि की छाँट भले ही ना मिले लेकिन जब आप शोरूम में जाकर नकद कीमत देते हैं तो क्या कोई भी सूट ले आओगे ? नही ना ? फिर जब पूरी कीमत अदा ही है तो कोई भी नौकरी क्यों ले लोगे ? इस समय आप अपने माता-पिता, दोस्त या उन सबको भी भूल जाना जो आपको किसी ऐसे क्षेत्र में भेजना चाहते हैं जिसके लिए आप अपने आप को फिट नही समझते। सुप्रसिद्ध गज़ल गायक जगजीत सिंह के पिता उन्हें सिविल सर्विस में भेजना चाहते थे। मगर उन्होनें नहीं मानी और संगीत से जुड़े रहे। बाद में उनके पिता ने खुद कहा कि उनके बेटे ने उनकी बात ना मानकर अच्छा किया।
अध्ययन सामग्री-
 किताबों के प्रति विद्याथियों में बहुत उदासीनता है। बहुत से तो ऐसे हैं जिनके पास गिनी-चुनी तीन-चार किताब होती हैं उनमें से भी एकाध दोस्तों से मांगकर लाई हुई। पत्रिका...! महिने में एक-आध 15-20 रूपये वाली ले आते है वह भी मन मारकर। व्यक्तिगत रूप से मैं इस प्रकार के लोगों के खिलाफ हूँ हो सकता है आप खुद इसी प्रकार के हो और अपने आपको बहुत महान मानते हों। आप कहते होगें किताब खरीदने से कुछ नही होता; उनको पढ़ने से कुछ होता है, तो मैं कहूँगा जो चार-छः किताबें हर महिने पढ़कर एक तरफ नही रख देता उसकी सफलता पर मुझे शक है। ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने अपने पाठ्यक्रम से बाहर कभी कोई किताब नही पढ़ी। यह ठीक है कि वे भी छात्र हैं पर उनकी पढ़ाई किसी स्तर की नही हो सकती। क्योंकि हमारे यहां की तो सरकार ही किताबों में दी गई जानकारी को दस बार छानकर देती है और उसमें ऐसा कुछ आने ही नही देती कि कोई अपनी जानकारी के दायरे को तोड़ सके। देश की, सरकार की, विज्ञान की, गणित की उन गहराईयों को समझ सके जिनसे एक क्लक या अधिकारी का नही एक वैज्ञानिक या आविष्कारक का जन्म हो सके। इसलिए तो अच्छी पढ़ाई के लिए भारतीयों को देश के बाहर जाना पड़ता है। आप किसी विषय पर किसी लेखक की वह किताब पढ़कर देखिए जो कहीं के पाठ्यक्रम में नही है मैं क्या कहना चाहता हूं आप समझ जाऐगें। और अगर आप बिना किताब पढ़ने वाले महान हो तो आपकी महानता का आकलन करने के लिए मैं एक उदाहरण देता हूँ।
 आप सट्टा या लॉटरी अच्छी तरह समझते होगें। इसमें एक व्यक्ति यदि एक रूपया लगाता हैं तो उसे अस्सी मिलने की संभावना रहती है। एक के अस्सी की चाह में वह अपना सबकुछ लगाता चला जाता है और अंततः कंगाल हो जाता है। हो सकता है आपकी जानकारी में कोई ऐसा हो जो कंगाल के स्थान पर मालामाल हो गया हो। आप उसका भी अनुसरण कर सकते हो। खैर....। समाज ऐसे व्यक्ति को मुर्ख कहता है। और आप जब सट्टे के अनुपात में भी अपनी पढ़ाई पर खर्च नही करते तो बताइए आपको क्या कहा जाए... मूर्ख2 या मूर्ख3 ?
क्या आप ऐसे कारीगर को अपना कोई काम करने की अनुमति दोगे जो अपने औजार तक नहीं रखता ? आप खूब समझते हैं; बिना औजारों के वह कारीगर आपकी वस्तु को खराब ही करेगा। आपको यह भी समझना चाहिए आप अपने भविष्य को बनाने में एक कारीगर का ही काम कर रहे हो आप इस काम को अगर बिना औजारों के करते हो तो क्या होगा ? आपके औजार किताबें ही तो हैं आप अगर इतना नहीं समझते तो आप अपना भविष्य खराब कर लोगे और बहुत से विद्यार्थी कर भी रहे हैं। आपको अगर बिना हथियारों के रणभूमि में छोड़ दिया जाए तो आप साफ-साफ समझते हैं आपकी हार निश्चित हैं कंपटीशन को आप किसी रणभूमि से कम समझते हो तो आप बहुत बड़ी भूल कर रहे हो। अपनी आँखे खोलो ! आपके हथियार कहां हैं ? औजार कहां है ? उन्हें पहचानो, उन्हें खोजो, उन्हें निपुणता से चलाना सीखो...! तभी आप विजय का ताज धारण करोगे, केवल तभी आप अपने भविष्य के वास्तविक निर्माता बन सकोगे। केवल तभी आप अपने भविष्य को ऐसा रूप दे सकोगे जिसका लोग उदाहरण देगें। लेकिन कभी-कभी उदाहरण क्या दिया जाता इसके लिए आप आगे पढ़ेगें।
 पर्याप्त किताबों का आपके पास होना इतना जरूरी है कि कर्ज पर भी आपको लेनी पड़े तो ले लो। आपकी नई जिंस, लेटेस्ट मोबाइल फोन, चमकदार बाईक, आपकी शान को बढ़ाने वाली सभी चीजों से पहले आपकी जरूरत हैं किताब। आपको अगर भरपेट खाना नही मिलता तो भी आपको कोशिश करनी चाहिए कुछ और किताबें खरीदने की। भरोसेमंद और उच्च स्तरीय किताबें आपको जहां तक ले जा सकती हैं, ये बाकी की चीजों की, जिनपर आप पैसा खर्च कर रहे है; अपना कीमती समय खर्च कर रहे है; कोई औकात नही रह जाती। आप हो किस चक्कर में...?
अध्ययन और तरीका-
 किताबों से सीखने और समझने के शायद उतने ही तरीके होगें जितने कि विद्यार्थी। हर कोई किसी ना किसी विषय में ख़ास रूचि रखता है और किसी में उदास रूचि। कंपटीटर की बस यही मजबूरी है कि उसे ख़ास रूचि वाला विषय भी पढ़ना पड़ता है और उदास रूचि वाला भी। बड़ी परिक्षाओं में हालांकि कुछेक विषयों में महारत हासिल करनी होती है तो भी बाकी विषयों की सŸाा वहां समाप्त नही हो जाती। और छोटी परीक्षाओं में तो सरकार ही मिली-जुली होती है। कितने मंत्री किस पार्टी के होगें इस बात का हिसाब नही लगाया जा सकता।
 आपको इतना तो सुनिश्चित करके चलना चाहिए कि आप परीक्षा चाहे में सब कुछ छोड़ो उस विषय का कुछ नहीं छोड़ोगें जिसमें आपकी ख़ास रूचि है। मतलब अपनी रूचि के विषयों को तो गहराई तक पढ़ ही जाओ। उसके बाद बाकी विषयों को यह समझ कर पढ़ कर पढ़ लो आप किसी के यहां काम पर आए हो और वहां आपको काम ही उन विषयों को पढ़ने का मिला हुआ है जिनमें आपकी रूचि नही है। समाज में एक बार नज़र दौड़ाकर देखो कितने लोगें को उन कामों में जीवन खपाना पड़ रहा है जिनमें वे एक घण्टा भी नहीं रहना चाहते। किस तरह  लोग उन कामों को करने के लिए मजबूर हैं जिनमें उनकी नाम मात्र की भी रूचि नहीं है। इतने मजबूर कि वे और कुछ नहीं कर सकते, वहां से भाग नहीं सकते, उसे छोड़ नहीं सकते। हो सकता है आपके पिता-माता या और कोई नजदीकी भी इसी तरह की मजबूरी का सामना कर रहे हों। उन्हें जितना दर्द, जितनी पीड़ा वहां होती होगी आपको उस विषय को पढ़ने में नही होगी जिसमें आपकी रूचि नही है। जीवन भर मन मारकर कोई काम करने से बेहतर है दो-तीन साल किसी विषय को मन मारकर पढ़ लेना।
कुछ विद्यार्थी किताबी ज्ञान और वास्तविक दुनिया की गतिविधियों में कोई संबंध ही नही समझते। किताबें उन सब कारणों और परिणामों का लिखित रूप हैं जो हमारे आस-पास दिनभर घटित होते रहते हैं, वे नही समझ पाते इसलिए जब किताब पढ़ते है केवल तभी वे समझते हैं कि कुछ सीख रहे हैं बाकी समय को वे समय की बर्बादी मानते हैं। यही आदत और थोड़े बड़े रूप में मिलती है उन विद्यार्थियों में जो काम से काम रखने वाली नीति अपनाते हैं। वे अपने आस-पास वाली घटनाओं पर ही ध्यान देना बंद कर देते हैं और ऐसी बहुत सी बातों से वंचित रह जाते हैं जो उन्हें पता होनी चाहिए थी।
मैं यह नही कह रहा हूँ कि आप किताबें एक तरफ रख दो और निकल पड़ो न्यूटन के नियमों की प्रमाणिकता की जाँच करने। लेकिन यदि आपके किसी काम में न्यूटन का नियम संयोगवश ही काम कर रहा है तो आपको ध्यान देना चाहिए। साधारण व्यवहार के गणित और अंग्रेजी आपकी परीक्षा में किस रूप में आ सकते हैं आपको ध्यान देते रहना चाहिए। भौतिकी, जीवविज्ञान, भूगोल, राजनीति, अर्थशास्त्र, अंग्रेजी, गणित आदि विषयों से बहुत से प्रश्न जो आप नही कर पाते; ध्यान से देखो आपके आसपास के दुकानदार, सब्जीवाले, मजदूर, कारीगर और अनपढ़ लोग रोजाना हल करते हैं। उनसे आपको ऐसे तरीके पता चल सकते हैं जो किसी कोचिंग में, किसी किताब में आपको कभी नही मिलेंगें। मेरे तो ज्यादातर विषय ऐसे ही हैं क्योंकि मैं ऐसे लोगों के साथ भी रहा हूं और मैंने खुद भी इन सभी कामों को कुछ समय दिया है। आपको नज़र रखनी चाहिए हर उस चीज पर, हर उस घटना पर जिसे कल घुमा-फिराकर आपकी परीक्षा में रखा जा सकता है। अधिकतर  परीक्षाओं के अधिकतर प्रश्न किताबी ना होकर व्यावहारिक ही होते हैं। आपको किताबों के भीतर और बाहर घटित होने वाली घटनाओं को समान रूप से समझना चाहिए। आपको हर बात से बहुत कुछ लेना है। ‘हमें क्या लेना’ वाली सोच ही गलत है।
नोट्स-
  चार पांच साल लगे मुझे यह जानने में कि नोट्स होतें क्या हैं और अब समझ आया तो यह भी समझ आया ठीक ही हुआ मुझे नहीं समझ आया। कुछ विद्यार्थी दिनभर इसी जुगत में रहते हैं कि किसी तरह से अमूक नोट्स उसे मिल जाएं, कैसे भी करके अमूक कोचिंग के विद्यार्थी का रजिस्टर एक बार मिल जाए, बस कहीं से गणित के कुछ ख़ास फॉर्मूले मिल जाएं। वे जैसे-तैसे करके बंदोबस्त कर भी लेते हैं जहां भी ऐसा मलबा मिलता है करा लाते हैं फोटोकॉपी और दबा देते है पहले से बन रही गड्डी में या रख देते हैं फ्रिज पर। कुछ समय बाद वे नोट्स खुद ही अपना रास्ता बना लेते हैं। घर का कोई सदस्य उनसे रद्दी का काम लेता है और बाहर फेंक देता है। वे उस सामग्री को उतना समय भी नहीं दे पाते जितना कि उसे जुटाने में लगा था और चल पड़ते हैं किसी और नौट्स की फिराक में।
 उन्हें लगता है सामग्री बस मिल जानी चाहिए पढ़ तो हम बाद में लेगें। फलतः उनकी आदत सिर्फ दौड़-भाग करने की रह जाती है पढ़ने का तो उन्हें समय ही नही मिलता। कोचिंग या क्लास में भी वे इसी बात का ध्यान रखते हैं आज हमें कितने टॉपिक, कितने फॉर्मले या रूल बताए गए, इस बात का उन्हें कभी ध्यान नही आता कि जो बताया जा चुका है उसमें से उन्होनें कुछ सीखा-समझा या नही। टीचर सामग्री में अगर कुछ कमी कर दे या उसका स्तर घटा दे तो वे तुरंत कोचिंग बदलते हैं। छुट्टी कर दो तो उनकी पढ़ाई बाधित हो जाती है पढ़ाई मतलब रजिस्टर भरने का काम रूक जाता है। जो पहले से भरे पड़े हैं उन्हें तो वे बाद में पढ़ने के लिए छोड़े रखते है।
 ऐसे विद्यार्थियों का यदि मैं सही उदाहरण दूँ तो ना चाहते हुए मुझे गधे का नाम लेना पड़ रहा है। सावन के मौसम में जब सारा मैदान लहलाती हरी घास से ढका रहता है गधा सारे दिन मैदान में घूमकर शाम को भूखा ही वापस आता है। हरी घास को देखकर गधा खुश तो बहुत होता है साथ ही यह सोंचता है ‘इसे तो मैं खा ही लूँगा, पहले आगे की खा लूँ’ थोडा़ और आगे, थोड़ा और आगे और ऐसे ही चलते-चलते वह अपना दिन पूरा कर लेता है; मैदान पार कर जाता है। शाम को भूख मिटाने के लिए खाता है कूडा-करकट ही।
 इस आदत को तुरंत बदलने की आवश्यकता है। आदत मतलब गधे की नही आपकी।  आप अपने आपको इतना मजबूत बनाओ कि किसी को नोट्स दे भले ही दो, किसी से लेने ना पड़े। जिन नोट्स को अब तक आप दूसरों से मांगते फिरते थे अब खुद बनाओ। उन्हें बनाने के लिए अध्ययन करो। आपको मजबूरन विषय की गहराई तक जाना पड़ेगा और आप का ज्ञान बढ़ेगा।
 नोट्स की एक और असलियत यहां लिख देता हूँ हो सकता है आपको कुछ लाभ हो। नोट्स संजीवनी का काम करते हैं लेकिन केवल उसके लिए जिसने उन्हें बनाया है। जिसने विस्तृत सामग्री का अध्ययन किया है और फिर उसे लघु रूप दिया। वह जानता है उस लघु रूप के पीछे वास्तव में क्या विस्तृत रूप में है। जब भी वह नोट्स की चार लाईन पढ़ेगा बाकी की छŸाीस उसको याद आ जाएंगी। कोई दूसरा यदि पढ़ेगा तो ना वे चार समझ में आऐगी ना छŸाीस याद आएगीं। नोट्स में दूसरे व्यक्ति को वास्तविक सामग्री की परछाई ही मिल पाती है। इसलिए नोट्स खुद बनाए जाएं और खुद ही पढ़े जाए तो बेहतर है।
गुल्लक भरनी जरूरी है-
कंपटीशन में सफतला कोई भौगोलिक घटना नही है कि अमूक तारीक को अमूक समय आपके और सफलता के बीच कोई ग्रह आ जाएगा और आपको सफलता मिल जाएगी। ना ही असफलता कोई प्राकृतिक आपदा है कि अचानक भूकंप आ गया और आपका सफलता का महल ढह गया। यहां तो सबकुछ योजनाबद्ध है सफलता भी और असफलता भी। जब आप सही दिशा में अध्ययन करते हैं आपको कुछ सही साथी और अध्यापकों का सहयोग मिल जाता है, आपकी सफलता निश्चित हो जाती है। इसके विपरित चलने पर परिणाम भी विपरित ही होता है। आइए एक उदाहरण लेते हैं-
 एक बच्चा एक गुल्लक लेता  है और रोजाना उसमें एक रूपया डालने लगता है। जब तक उसमें पांच सौ रूपये नही हो जाते आप जानते हैं वह उस चीज को नही खरीद सकता जिसकी कीमत पांच सौ रूपये है। भले ही वह रोजाना बाजार जाता हो; महिने मे जाता हो या साल में एक बार, वह नहीं खरीद सकता क्योंकि वह नहीं चुका सकता पूरी कीमत। अब चाहे वह अपनी किस्मत को कोसे या खिलौने वाले को।
 ऐसी ही एक-एक गुल्लक हर कंपटीटर को मिली हुई है जिसे हमें जानकारी से भरना है। जब तक हम इतनी जानकारी जमा नही कर लेते कि किसी चीज ( परीक्षा ) की पूरी कीमत ( उत्तर ) दे पाएं, हमें कुछ नही मिलने वाला। आप इतना भी समझते है कि उसी गुल्लक में बच्चा एक के स्थान पर यदि दो रूपये रोजाना डाले तो वह अपनी पंसद की चीज पांच सौ के स्थान पर ढाई सौ दिन में ही खरीद सकता है। आप खुद भी अपनी मेहनत दुगुनी करके आधे समय में ही इतनी जानकारी जुटा सकते हैं जितनी आपकी सफलतना के लिए आवश्यक है।
पार्ट टाईम में कंपटीशन-
 कुछ काम करने वाले लोग, ऐसे लोग जो कहीं भी नियुक्त है, मजबूरी में या फैशन में, अपना दिन भर का समय किसी को दे चुके हैं; ऐसे भी बहुत से लोग परीक्षा देते हैैं। परिणाम उनका आप भी जानते हैं और मैं भी। शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति आपकी नजर में हो जो काम करता हो और कंपटीशन की इस दुनिया में कुछ पा गया हो। हो सकता है आप को भी कहीं काम करना पड़ता हो और मुश्किल से पढ़ाई को समय दे पाते हों तो बुरा मत मानिए मैं आपको गलत नहीं कह रहा हूँ; गलत तो आपका तरीका है। आप सोंचिए एक ऐसे विद्यार्थी के बारे में जो सुबह तीन बजे उठकर पढ़ने बैठ जाता है और रात को ग्यारह बजे तक लगा रहता है। दिन में वह छŸाीस तिगड़म सीखता  है, छप्पन लोगों से मिलता है। ऐसे लोगों से जो अध्ययन से जुड़े हैं। क्या वह आपका नाम मैरिट में अपने से ऊपर जाने देगा...? कभी नही...!
 इनमें सबसे घातक काम जो मेरे अनुभव में सामने आया है वह है बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का। इसमें तो ऐसा ही नही लगता कि हमारा कोई नुकसान हो रहा होगा। आप समझते होगे कि पढ़ाना भी तो एक प्रकार से पढ़ना ही है। जब हम किसी को पढ़ाते हैं तो साथ ही हम भी उस विषय या अध्याय को पढ़ते हैं। लेकिन मेरे साथी मैं कुछ कहूं इससे पहले अपने समाज में जानकारी में चैक कर लो कि जो लोग ट्यूशन पढ़ा रहे थे वे अपने लक्ष्य पर पहले पहुचंे या ट्यूशन ना पढ़ाने वाले। बात आपको खुद समझ आ जाएगी।
 वास्तव में होता क्या है जिस समय हमें अपने मुख्य विषयों के गहन अध्ययन की जरूरत होती है उस समय हम बच्चों को एल सी एम या सजीव और निर्जीव के अन्तर बता रहे होते हैं। जब हमें अपने समय को अपने अनुसार निर्धारित करने की जरूरत होती है हम बच्चों की सुविधानुसार बैच बना रहे होते हैं। अपने विषय, पाठ्यक्रम या परीक्षा में हुए बचलाव को भुलाकर हम बच्चों की परीक्षा विषय आदि के तौर-तरीकों को समझने में लगाते हैं। और इन सबसे बड़ी नुकसान की बात यह हो जाती है कि जब हमारे जिस दिमाग में अपनी परीक्षा और पढ़ाई को लेकर चिंतन और मनन होना चाहिए यह काम हम बच्चों के हित में कर रहे होते हैं।
 यदि आपकी समस्या गंभीर है। आप मजबूर है काम करने के लिए, आपके परिवार को कोई और सहारा नही है, कोई और कमाने वाला नही है। साथ ही आप पढ़ाई में भी गहन रूचि रखते हैं आप इसमें भी कुछ करने के लिए छटपटाते रहते हैं। आप एकांत में जाकर बैठ जाइए और पूछिए अपने आप से क्या आपके भीतर वे गुण, वे योग्यता, वह समझ, जुनून है; जिसके बल पर यदि आपको यदि सिर्फ पढ़ाई के लिए छोड़ दिया जाए तो आप निश्चित रूप से सफलता पा लेगें। यदि आपकी अंर्तात्मा से निकला जवाब ‘‘‘‘हाँ’’’’ है तो मेरे दोस्त गिरा दो एक बार स्थिति की दीवार और लगा दो एक-आध साल पढ़ाई में। आपके घर में, परिवार में कोई प्रलय नही आएगी, कोई ज़लज़ला नही आ जाएगा, कोई इतना बड़ा अनर्थ नही हो जाएगा जिसे कुछ समय बाद सुधारा ना जा सके। आपके परिवार पर कुछ कर्ज चढ़ सकता है, ज्यादा होगा तो आपका घर मकान बिक जाएगा या कुछ और आर्थिक नुकसान हो जाएगा।हो जाने दो! बेफिक्र होकर लगे रहना। विचलित मत होना। जीत तुम्हारी ही होगी। आत्मा की आवाज पर किया गया काम व्यर्थ नही जाता। आपका जीवन भर का रास्ता बदल जाएगा। आपके माँ-बाप या जीवन साथी हो सकता है कुछ समय के लिए आपको पागल मान लें, आप से नाराज हो जाएं, आपको छोड़ दें। एक दिन आप पर नाज़ करेगें, आपका सम्मान करेंगें। आपके माँ-बाप या जीवन या जीवन साथी होने में खुद को भाग्यवान महसूस करेंगें। आपको याद रखना चाहिए कि जीने का सच्चा अधिकार सृष्टि उन्हें ही देती है जो इस अधिकार को पाने के लिए सभी सीमाओं को पार कर जाते हैं। जीवन के वास्तविक सुख बने ही उन लोगों के लिए हैं जो हर स्थिति में, चाहे कितनी भी कितनी भी बुरी, कितनी भी अंधकारमय क्यों ना हो; अपना रास्ता बना लेते हैं। आगे बढ़ने का सच्चा अधिकार उन्हें ही मिलता है जो हर खाई को, हर पर्वत को लाँघना जानते हैं।
आपकी सफलता आप तक ही सीमित नही होती-
विद्यार्थी समझते हैं कि उनकी पढ़ाई, उनकी सफलता या असफलता सिर्फ उन्हीं तक सीमित है। अगर वे सफल या असफल होते हैं तो उसका असर उनके परिवार पर ही होगा। आप अगर पढ़-लिखकर भी मजदूरी करने के लिए मजबूर हुए तो इससे केवल आपका ही सपना टूटकर बिखरेगा। सिर्फ आपके ही माता-पिता की आशाएँ पूरी नही हो पाएंगी। सिर्फ आप ही अपनी भावी जिंदगी को नही सुधार पाएगें।
वास्तविकता इससे बहुत बड़े रूप में है। हम सामाजिक प्राणी हैं समाज हमारी गतिविधियों पर, हमारे काम करने के तरीकों पर, हमारी दिनचर्या पर, रहन-सहन पर, और पढ़ाई पर भी, पूरा ध्यान रखता है समाज इस बात का भी ध्यान रखता है आप कितने समय से क्या पढ़ रहे हैं, रोजाना बैग उठाकर कहां जा रहे हैं और आपकी सारी मशक्कत का आपको क्या मिलता है। उसके आधार पर हीे समाज निर्धारित करता है आपके बाद वाले बच्चों को कहां तक पढ़ाना है, किस कक्षा से स्कूल छुड़ाना है। आप यदि सभी दिशाओं में हाथ पैर-मारकर, थककर, हारकर बैठ जाते हैं; तब समाज को उदाहरण मिलता है एक पढ़े-लिखे बेरोजगार का। उन्हें मौका मिल जाता है पढ़ाई की असलियत समझने का। आपको भी ऐसे उदाहरण दिए जाते होेगें। आपके आस-पास के लोग अपने बच्चों को सलाह देंगें; दसवीं के बाद कोई बिजली-उजली का काम सीखने की। आपके आप-पास के पढ़ने वाले बच्चे ऐसी प्रवृति के हो जाते हैं कि वे पढ़ाई की कोई अहमियत ही नही समझते, ना ही पढ़ाई को लेकर उनमें कोई उत्साह रह जाता है और ना ही वे पढ़ाई को इस योग्य समझते हैं कि इसके बल पर जीवन में कुछ बदलाव आ सकता है। आपको जानने वाले लोग वर्षों तक आपका उदाहरण देतें हैं और पढ़ाई को कोसते हैं।
 इस प्रकार समाज में शिक्षा का स्तर गिरता चला जाता है। और अनपढ़ समाज के निर्माण में आपकी भूमिका सराहनीय साबित होती है। अगर आप अपना सुधार आज नही करते तो हो सकता है (ईश्वर ना करे ऐसा हो) आपके ही उदाहरण देकर लोग अपने बच्चों का स्कूल छुड़ाएं।
 यदि आपका मन आपको शंकापूण जवाब देता है आपको भीतर की और खींचता है; कहता है ‘‘वहां मत जा...! तू कुछ नही कर पाएगा।’’ तो आपको यह क्षेत्र पूरी तरह छोड़ देना चाहिए। आप जिस काम को भी करते हैं भले ही मजदूरी करते हों, उसी क्षेत्र में आगे बढ़ने की कोशिश कीजिए। हर व्यवसाय चाहे वह कितना भी छोटा क्यों ना हो, आगे बढ़ने का मार्ग जरूर होता है। उसमें रहकर भी आप अपने परिवार को खुश रख सकते हैं। समाज का सबसे बड़ा हिस्सा मेहनत मजदूरी करते हुए ही जीवन बीताते हैं। सरकारी नौकरी से बाहर भी लोग कामयाब हैं, संतुष्ट हैं, खुश हैं।
नकारात्मक मत सोचिए-
 किसी परीक्षा में असफल होने पर कुछ साथी निरूत्साहित हो जाते हैं। उन्हें पछतावा होने लगता है इस सिरदर्दी को पालने पर। ऐसा लगने लगता है नौकरी मेहनत से नहीं किस्मत से लगती है। और जब हमारी किस्तम में ही नही है तो मेहनत का क्या बनता है...? समस्या उस समय और बड़ी हो जाती है जब आपके साथी और परिवार वाले भी आपको कोसने लगते हैं। आपको चेतावनी दी जाती है कि आपके पास बस यही साल है; अगर इस साल में कुछ नही होता तो शादी कर दी जाएगी, या पढ़ाई छुड़ाकर किसी काम पर लगा दिया जाएगा या कुछ और धमकी। कुछ की तो खुद ही स्थिति ऐसी होती है उन्हें कोई कुछ ना कहे तो भी उन्हें तारे नजर आते रहते हैं। आखि़र कौन नही चाहता उसको जल्दी से जल्दी सफलता मिले और उसका जीवन आगे बढ़े ? आप ज़रा इन बातों पर ध्यान दीजिए-
 समाज के कितने लोग पाँच-छः हजार महीने के प्राईवेट नौकरी करते हैं, कितने लोग मेहनत-मजदूरी करते हैं, रेढ़ी-ठेला खींचते हैं और अपने मालिक की, उस्ताद की, ठेकेदार की गालियाँ सुनते हैं, बकवास सुनते हैं। और फिर भी चुपचाप लगे रहते हैं। हो सकता है आप किसी अच्छी सोसायटी में रहते हों और आपके आस-पास ऐसे लोग ना रहते हों तो आप एक बार सड़क पर चले जाइए फिर देखिए कितने लोग सड़क पर काम करते है। फिर ध्यान से सोंचो कंपटीशन अगर इतना आसान होता, इतना छोटा काम होता, इतने कम समय में लोग यहां से कुछ निकाल ले जाते तो आपसे पहले ये सब लोग किसी ना किसी दफ्तर में होते। आपको क्या लगता है आप ही पढ़े-लिखे हो ? उन मजदूरों में भी बहुत से पढ़े हैं; बहुत से कंपटीटर भी रह चुके हैं। जो सब्जी बेज रहा है, जिसे आप तू-तड़ाक से बुलाते हैं हो सकता है उसके दसवीं बारहवीं में आपसे अच्छे मार्क्स आए हों। आज जो सर झुकाए ठेला खींच रहा है शायद किसी वर्ष सिविल के साक्षात्कार तक पहूँचा हो।
आप उनकी किस्तम को मत कोसिए। किस्मत को अगर मानते हो तो तुक्का पद्धति अपनाओ। मंत्र शुरू में ही लिख दिया गया है उसका जाप करो। उनके सामने भी ऐसी ही स्थिति कभी बनी थी जिसके बाद उन्होंने हार मान ली, उम्मीद छोड़ दी। जो जब नही हारे थे, फिर से खड़े हो गए थे कहीं से साहस जुटाकर और लड़ते रहे स्थिति से। मान दिया उन्होंने समस्या नाम का शैतान हो जीत गए जीवन भर के लिए। बन गया उनके जीवन का हर दिन, हर पल मजदूरों के जीवन से बहुत अलग, बहुत सुलभ।
 ऐसा परिवर्तन, ऐसा सुधार जो आपके सारे जीवन को प्रभावित करता है, बदल देता है, सुधार देता है दो-चार महिने में नहीं आ सकता। इस परिवर्तन को थोड़ समय तो चाहिए ही। थोड़ लम्बा समय...! इस सुधार में जो समय लगता है वह इतना तो होना ही चाहिए कि उसके वास्तविक हकदार ही उसे प्राप्त कर पाए। दो-चार महिने में दो-चार किताबें पढ़कर अगर सरकारी नौकरी मिल जाएगी तो मेहनत-मजदूरी के काम क्या वे लोग करेंगे जो कई-कई सालों से दिन-रात किताबों में सिर खपा रहे हैं...?